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आचार्य विद्यासागर का समाधिमरण त्याग और वैराग्य का चमकता सूरज चंद्र गिरी में अस्त हुआ

आचार्य विद्यासागर

जैन संत शिरोमणि आचार्य विद्यासागर महाराज उम्र 77 वर्ष तीन दिन की संलेखना के बाद ब्रह्मलीन हो गए डोंगरगढ़ में चंद्रगृह तीर्थ में शनिवार देर रात करीब 2:35 पर उन्होंने देह त्यागी जैन समाज के आधुनिक वर्तमान कहे जाने वाले संत आचार्य विद्यासागर महाराज ने अखंड मौन धारण कर लिया था दे त्यागने के सूचना मिलते ही दर्शन के लिए लोगों का डाटा लग गया रविवार दोपहर अंतिम संस्कार विधि पूरी की गई मध्य प्रदेश में उनके सम्मान में आधे दिन का राजकीय शोक रखा गया आचार्य श्री ने समाधि से तीन दिन पहले आचार्य पद त्यागते हुए शिष्य निर्यापक श्रवण मुनि समय सागर को सौंप दिया गय आचार्य श्री का जन्म कर्नाटक के बेलगांव के सदलगा गांव में 10 अक्टूबर 1946 को शरद पूर्णिमा को हुआ था उनके तीन भाइयों में से दो जैन मुनि हैं उनकी दो बहनों ने ब्रह्मचर्य लिया वह 26 साल की उम्र में आचार्य हो गए थे डोंगरगढ़ आचार्य विद्यासागर महाराज का अंतिम यात्रा में लाखों श्रावणों की भीड़ देखने को मिली 

आचार्य विद्यासागर का समाधिमरण त्याग

आचार्य श्री ने 67 पंचकल्याण किए इनमें 52 सिर्फ मध्य प्रदेश में ही है

आचार्य श्री का मध्य प्रदेश से गहरा लगाव रहा उन्होंने पूरे जीवन काल में 67 पंचकल्याणक किया इनमें से 52 मध्य प्रदेश में ही किया बुंदेलखंड में उनके प्रभाव का ही कमाल था कि उन्होंने इस क्षेत्र में 17 मंदिरों की प्रतिष्ठा कराई आचार्य श्री पहली बार 1976 में दामों के कुंडलपुर आए थे यहां बड़े बाबा के दर्शन के बाद उनका लगाव हो गया और 1977 में आए और फिर बार-बार आते रहे वर्ष 2022 में आचार्य श्री की मौजूदगी में महा महोत्सव भी कराया गया था दिगंबर मुनि परंपरा के आचार्य श्री देश के इकलौते ऐसे आचार्य रहे जिन्होंने 496 मुनियों को दीक्षा दी उनका सत्संग देश का सबसे बड़ा है इनमें से 300 से ज्यादा मुनि श्री और आरिका का है उन्होंने कुल 56 चातुर्मास में से 37 मध्य प्रदेश में किया

आचार्य विद्यासागर का समाधिमरण त्याग

अंतिम दर्शन को जा रहे युवकों की कर नहर में गिरी तीन मौतें

सतना से आचार्य श्री के अंतिम दर्शन करने डोंगरगढ़ जा रहे थे युवकों की कर नहर में गिर गई इनमें से तीन की मौत हो गई है

विद्यासागर महाराज के उत्तराधिकारी समय सागर महाराज 65 मूल रूप से कर्नाटक के रहने वाले हैं वह पहले शांतिनाथ जैन के नाम से जाने जाते थे उन्होंने ब्रह्मचर्य व्रत 2 में 1975 को अपनाया और 18 दिसंबर 1975 को झुलक दीक्षा ली

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