सुप्रीम कोर्ट का फैसला गोपनीयता का प्रावधान सूचना के अधिकार का उल्लंघन संविधान पीठ
सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को अहम फैसले में चुनावी बॉन्ड को असंवैधानिक करार देते हुए इन्हें रद्द कर दिया है चुनावी बॉन्ड योजना के लिए आयकर कानून जनप्रतिनिधित्व कानून में संशोधन रद्द कर दिया है शीर्ष कोर्ट ने कहा योजना में गोपनीयता का प्रावधान अनुच्छेद 19(1)के तहत सूचना के अधिकार का उल्लंघन है कोर्ट ने बॉन्ड जारी करता एसबीआई को आदेश दिया है कि वह 2019 से अब तक दलों को मिले बंद का बुरा 6 मार्च तक चुनाव आयोग को सौंप आयोग 13 मार्च तक सार्वजनिक करें इससे देश को पता चलेगा कि किसने कितना चंदा दिया जिंदालों ने बंद नहीं बनाए उन्हें खरीदारों के खाते में राशि लौटना होगी चीफ जस्टिस डी य चंद्रचूड़ जस्टिस संजीव खन्ना बी गवाही और जब परडींवाला मनोज मिश्रा की संविधान पीठ ने कहा योजना को राजनीति में काले धन पर अंकुश में मदद बात कर उचित नहीं ठहरा सकते
अब तक 30 किस्तों में हुई 16518 करोड रुपए के बंद की बिक्री सबसे ज्यादा दान भाजपा को
सरकारी आंकड़ों के मुताबिक अब तक 30 किस्तों में 16518 करोड रुपए मूल्य के चुनावी बॉन्ड बेचे जा चुके हैं अदर का कहना है कि 2019 से 2021 के दौरान जारी हुए बंद का दो तिहाई हिस्सा भाजपा को दान में मिला इसके मुकाबले कांग्रेस को सिर्फ 9 फ़ीसदी बंद मिले इन 3 साल के दौरान साथ राष्ट्रीय पार्टियों की 62 फ़ीसदी से ज्यादा आमदनी चुनावी बॉन्ड से मिले चंदा से हुई अदर की रिपोर्ट के मुताबिक वर्ष 2022-23 में कॉर्पोरेट डोनेशन का 90 फ़ीसदी भाजपा को मिला इस अवधि में राष्ट्रीय पार्टियों ने 830 करोड रुपए का चंदा मिलने की घोषणा की थी इसमें भाजपा को 719.85 करोड रुपए जबकि कांग्रेस को 69.92 करोड रुपए मिले
क्या है चुनावी बॉन्ड
चुनावी बॉन्ड राजनीतिक पार्टियों को चंदा देने का जरिया है यह वचन पत्र की तरह है जिस देश का कोई भी नगरी किया कंपनी भारतीय स्टेट बैंक की शाखों से खरीद सकता है और अपनी पसंद की पार्टी को गुप्त तरीके से दान कर सकता है दान करता का नाम और अन्य जानकारी दस्तावेज पर दर्ज नहीं की जाती स्टेट बैंक हजार 1000 10000 और एक करोड रुपए मूल्य के बॉन्ड जारी करता है बंद की अवधि 15 दिन होती है यानी दान मिलने के 15 दिन के अंदर राजनीतिक दलों को इन्हें बुलाने होता है सिर्फ उन्हीं राजनीतिक दलों को बंद के जरिए चंदा दिया जा सकता है जिन्होंने लोकसभा या विधानसभा के पिछले चुनाव में काम से कम एक फ़ीसदी वोट हासिल किया हो
इसलिए निशाने पर चुनावी बॉन्ड
चुनावी बॉन्ड राजनीतिक चंदे में काले धन का लेनदेन खत्म करने और दालों की रकम जुटाना की प्रक्रिया को पारदर्शी बनाने के लिए ले गए थे आलोचकों का कहना है कि बंद के जरिए चंदे पर रहस्य का पर्दा रहता है इसका सार्वजनिक रिकॉर्ड नहीं है कि बंद किसने खरीदा और किस दान दिया इससे करदाताओं को दान के स्रोत के जानकारी नहीं होती बॉन्ड पूरी तरह गुप्त भी नहीं होते क्योंकि बैंकों के पास रिकॉर्ड होता है सत्ताधारी पार्टी आसानी से यह जानकारी जुटा सकती है और इसे दान देने वाले प्रभावित हो सकते हैं
नोट के मुकाबले वोट होगा मजबूत
कांग्रेस कांग्रेस ने फैसले का स्वागत करते हुए कहा कि यह नोट के मुकाबले वोट की ताकत को और मजबूत करेगा पार्टी अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने कहा इसमें कोई आश्चर्य नहीं है कि इस योजना के तहत सबसे ज्यादा चंदा भाजपा को मिला कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने आरोप लगाया कि भाजपा ने चुनावी बांड को रिश्वत और कमीशन का माध्यम बना दिया था वरिष्ठ वकील प्रशांत भूषण ने कहा कि फैसले से लोकतांत्रिक प्रक्रिया को मजबूती मिलेगी चुनावी बॉन्ड योजना में यह पता नहीं चलता था कि किसने कितना रुपए के बंद खरीदे और किसे दिए
पीठ ने क्या कहा
कॉर्पोरेट डोनेशन पूरी तरह व्यावसायिक लेनदेन है चुनावी बॉन्ड योजना लोकतंत्र के खिलाफ है यह बड़ी कंपनियों को लेवल प्लेयिंग फील्ड सभी को समान अवसर खत्म करने का मौका देती है राजनीतिक फंडिंग में कॉर्पोरेट दान व्यावसायिक लेनदेन है
योजना गोपनीय प्रकृति के कारण सूचना के अधिकार का उल्लंघन है संविधान के अनुच्छेद 19 (1) (ए) के तहत स्वतंत्र भाषण और अभिव्यक्त पर भी प्रहार करती है
दानदाताओं की गोपनीयता हम पर राजनीतिक फंडिंग में प्रदर्शित नहीं आ सकती योजना से सत्ताधारी दल को ज्यादा लाभ होता है
राजनीतिक दलों की फंडिंग करने वालों की पहचान गुप्त रहेगी तो रिश्वतखोरी की आशंका खड़ी हो सकती है पिछले दरवाजे से रिश्वत को कानूनी जामा पहनाने की इजाजत नहीं दी जा सकती
सब कुछ जानने का आम अधिकार नहीं
अटॉर्नी जनरल आर वेंकटरमण ने योजना का समर्थन करते हुए सुप्रीम कोर्ट में कहा था कि यह राजनीतिक दलों को दिए जाने वाले चंदे में साधन के इस्तेमाल को बढ़ावा देती है उनका तर्क था कि नागरिकों को उचित प्रतिबंधों के अधीन हुए बिना कुछ भी और सब कुछ जानने का सामान्य अधिकार नहीं हो सकता यह तर्क इस मांग से जुड़ा था कि राजनीतिक पार्टियों को यह जानकारी सार्वजनिक करनी चाहिए कि उन्हें किसी से कितना धन झंडे के रूप में मिला |
इस फैसले का असर आने वाले समय में हमें देखने को जरूर मिलेगा अब देखना यह है कि यह फैसला क्या असर करता है
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